आल्हा उदल की कहानी: आल्हा और उदल बुंदेलखंड के महोबा के प्रसिद्ध योद्धा थे। इनकी वीरता और भक्ति की गाथाएं प्राचीन भारतीय इतिहास और लोककथाओं का हिस्सा हैं। ये दोनों भाई बुंदेलखंड के राजा परमार के सेनापति थे और अपनी अद्वितीय शक्ति, साहस और भक्ति के लिए प्रसिद्ध थे।
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आल्हा और उदल ने माता शारदा की 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की। इनकी भक्ति और समर्पण इतनी गहरी थी कि उन्होंने मां शारदा को खुश करने के लिए अपनी जीभ तक अर्पण कर दी थी। यह भी मान्यता है कि मां शारदा ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी जीभ को उसी पल वापस कर दिया। इसके अलावा, मां शारदा ने आल्हा और उदल को अमर होने का वरदान भी दिया था।
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हर युद्ध के पहले आल्हा और उदल मां शारदा का आशीर्वाद लेने मंदिर जाते थे और मां शारदा के आशीर्वाद के कारण आल्हा और उदल ने कोई भी युद्ध नई हारा, अंत में पृथ्वीराज चौहान से युद्ध करते समय जब उदल मृत्यु हुई तब आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर वैराग्य धारण कर लिया। आल्हा ने अपने हथियारों को मां शारदा के मंदिर पर चढ़ाकर, नोक को टेढ़ा कर दिया था, जिसे आज तक सीधा नहीं किया जा सका है।
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मंदिर के पंडित बताते हैं कि आज भी मां शारदा का पहला श्रृंगार आल्हा और उदल ही करते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में मां शारदा मंदिर के पट खोलते समय विभिन्न रहस्यमय अजूबों का अनुभव होता है, जैसे मंदिर का गर्भगृह प्रकाश से भर जाता है या मंदिर में पुष्प चढ़े हुए दिखाई देते है, जो यह दर्शाता है कि आल्हा और उदल आज भी अदृश्य रूप में मंदिर में आते है और मां शारदा की पूजा करते है।
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