नमस्कार दोस्तों, आज मैं आपको भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बैजनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में बताने जा रहा हूं, यह झारखंड के देवघर में स्थित है तथा इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त रावण के द्वारा की गई थी बैजनाथ ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है क्योंकि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से शिव भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उनकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।
बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी
एक समय की बात है जब रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या कर रहा था लेकिन भगवान शिव रावण की तपस्या से प्रसन्न नहीं हो रहे थे तब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने सर को काटकर चढ़ाने लगा, रावण ने एक एक करके अपने नौ सर भगवान शिव को काटकर चढ़ा दिए और जैसा ही दसवां सर काट कर चढ़ाने वाला था तभी भगवान शिव रावण से प्रसन्न हो गए और रावण को दर्शन देकर उसे वरदान मांगने के लिए कहा।
तब रावण ने कहा- हे भोलेनाथ मैं आपके वरदान से काफी शक्तिशाली हो चुका हूं तथा किसी भी जीव के द्वारा मुझे परास्त करना संभव नहीं है अत: आप से मेरी विनती है कि आप कैलाश छोड़ कर मेरे साथ लंका निवास करने चले तथा सदैव के लिए मेरे साथ लंका में ही रहें तब भगवान शिव ने रावण की ये बात सुनकर रावण से कहा- हे रावण मेरे द्वारा कैलाश को छोड़कर जाने से इस समस्त संसार का अंत हो जाएगा इसलिए मैं कैलाश पर्वत को छोड़ कर नहीं जा सकता।
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तब रावण ने भगवान शिव से कहा क्या मेरा वरदान अधूरा रह जायेगा, तब भगवान शिव ने रावण से कहा कि मैं तुम्हें अपना एक अंश ज्योतिर्लिंग के रूप में देता हूं तथा इस ज्योतिर्लिंग को तुम लंका में ले जाना तथा यह मेरा ही एक अंश है जिससे मैं हमेशा के लिए लंका में रहूंगा, परंतु मेरी एक शर्त है तुम क्या ज्योतिर्लिंग को सीधे लंका में ले जाकर रखना अगर यह ज्योतिर्लिंग कहीं भी धरती पर रखा गया तो यह वहां पर स्थापित जो जायेगा तथा उसे वहां से हटाया नही जा सकता नही है, मेरी इस बात का ध्यान रखना।
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जैसे ही रावण द्वारा यह वर मांगने की बात है, देवताओं को पता चली तो वे सभी भगवान विष्णु के पास गए और भगवान विष्णु से कहते है कि अगर रावण के साथ भगवान शिव लंका चले गए तो रावण सदैव के लिए अपराजित हो जाएगा और उसे हराना असंभव हो जाएगा तब भगवान विष्णु ने वरुण देव को आज्ञा दी कि वे रावण के उदर में प्रवेश करे। भगवान विष्णु की आज्ञा पाकर वरुण देव ने रावण के उदर में प्रवेश किया।
भगवान शिव से ज्योतिर्लिंग प्राप्त करने के बाद रावण लंका के लिए चल पड़ा रावण ज्योतिर्लिंग लेकर जा रहा था तभी उसे रस्ते मे जोर से लघु शंका लगी और वह रास्ते में रुककर शिवलिंग को एक ग्वाले को देकर लघु शंका करने चला जाता है।
जब रावण लघु शंका करके लौटा तो उसने देखा कि वहा ग्वाला वहां पर नहीं था और उसने शिवलिंग को धरती पर रख दिया था यह देखते ही रावण क्रोधित हो गया तथा वह शिवलिंग को अपने बल से उठाने का प्रयास करने लगा मगर वह असफल रहा और वहां खाली हाथी लंका लौट गया।
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कहते हैं जिस ग्वाले ने शिवलिंग को धरती पर रख दिया था वह प्रतिदिन आकर आकर शिवलिंग को डंडे से मारता था एक दिन वह जब खाना खाने बैठता है तो उसे याद आता है कि उसने आज शिवलिंग को डंडे से नहीं मारा है तो वह बिना खाना खाए ही शिवलिंग को डंडे से मारने के लिए निकल पड़ता है और जैसे ही डंडे से मारने वाला होता है भगवान शिव उससे प्रसन्न हो जाते हैं और उसे दर्शन देते हैं और उसे कहते हैं कि मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हुआ और तब से बैजु ग्वाले के नाम इस ज्योर्तिलिंग का नाम बैजनाथ ज्योर्तिलिंग पड़ा। इसे बाबा बैजनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है।
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