कामाख्या मंदिर के बारे में क्या खास है? कामाख्या देवी की कहानी क्या है? कामाख्या मंदिर में पशु बलि की परंपरा
भारत में कई मंदिर हैं जो अपनी रहस्यमय मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) का महत्व और रहस्य अन्य मंदिरों से अलग है। यह मंदिर असम राज्य के गुवाहाटी शहर में स्थित है और 51 शक्ति पीठों में से एक है। इसे विशेष रूप से तंत्र-मंत्र और शक्ति पूजा के लिए जाना जाता है, इस मंदिर में कामाख्या देवी की मूर्ति के बजाय उनकी योनि रूप की पूजा होती है, जो सृजन और मातृत्व की प्रतीक मानी जाती है। आइए जानते हैं इस अद्भुत मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें और उसके पीछे का रहस्य।
कामाख्या मंदिर का इतिहास
कामाख्या मंदिर का इतिहास प्राचीन ग्रंथों और लोक कथाओं में मिलता है। इसका संबंध माता सती के साथ जुड़ा हुआ है, जब देवी सती ने यज्ञ की अग्नि में अपना देह त्याग दिया था, तब भगवान शिव माता सती के शव को लेकर तीनो लोको में घूमने लगे। उसके बाद भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर को कई टुकड़ों में काट दिया, जिससे नीलांचल पहाड़ी में भगवती सती की योनि गिरी। उस योनि ने एक देवी का रूप धारण किया जिसे देवी कामाख्या कहा जाता है।
मंदिर की संरचना और स्थापत्य भी बहुत पुरानी मानी जाती है, हालांकि इसके वास्तविक निर्माण की तिथि स्पष्ट नहीं है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इसका निर्माण 4-5वीं सदी में हुआ था, जबकि अन्य मानते हैं कि यह 7वीं या 8वीं सदी में बना था।
कामाख्या मंदिर और अंबुवाची मेला
कामाख्या मंदिर से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण पर्व है अंबु वाची मेला। यह मेला हर साल जून-जुलाई महीने में आयोजित होता है और इसे देवी के मासिक धर्म के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दौरान देवी रजस्वला होती हैं और मंदिर के कपाट तीन दिन के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इस समय मंदिर में कोई पूजा नहीं होती, और तीन दिन बाद जब मंदिर के कपाट खुले तो भक्तों को एक विशेष वस्त्र, जिसे अंबुबाची वस्त्र कहा जाता है, प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
कामाख्या मंदिर में पशु बलि की परंपरा
कामाख्या मंदिर तंत्र-मंत्र, वशीकरण, काला जादू और अन्य रहस्यमय अनुष्ठानों के साथ जुड़ा हुआ है। यह स्थान तंत्र साधना करने वालों के लिए विशेष महत्व रखता है। यहां देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए नर बकरों और भैंसों की बलि दी जाती है, लेकिन मादा पशुओं को बलि से दूर रखा जाता है। इस दौरान मंदिर के वातावरण में खून का दृश्य दिखाई देता है। पहले यहाँ नर बलि भी दी जाती थी जिसे बाद में बंद दिया गया। हालांकि, इसे लेकर कई सवाल भी उठते हैं और यह विषय अक्सर चर्चा का कारण बनता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो असम के पानी में लौह तत्व (iron) की अधिकता होती है, जिससे पानी का रंग हल्का लाल हो जाता है। इस तथ्य को ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को लाल होने से जोड़ा जाता है। हालांकि, यह घटना केवल इन तीन दिनों के दौरान होती है, जिसके कारण कुछ लोग इसे देवी के चमत्कार मानते हैं।
कामाख्या मंदिर की संरचना और वास्तुकला
कामाख्या मंदिर की वास्तुकला भी विशेष है। यह मंदिर नीलांचल पर्वत पर स्थित है और इसका निर्माण पुरानी पौराणिक और तांत्रिक विधियों के आधार पर किया गया है। यहां की संरचना में 64 योगिनी और भैरव की मूर्तियां स्थापित की गई हैं, जो तंत्र साधना के अनुष्ठान के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
यह प्रमुख तांत्रिक मंदिर है, जिसे नागर शैली में बनाया गया है। मंदिर का मुख्य ढाँचा काले पत्थर से बना है और इसकी संरचना पर उकेरे गए धार्मिक चित्र और शिल्प कला भारतीय वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। मंदिर का गर्भगृह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां देवी कामाख्या की योनि रूप में पूजा की जाती है। यहाँ हमेशा जल बहता रहता है, जिसे देवी का आशीर्वाद माना जाता है। मंदिर के शिखर पर एक कलश है, जो उसकी आभा को और बढ़ाता है। मंदिर के चारों ओर कई छोटे-छोटे मंदिर हैं, जिनमें देवी-देवताओं की पूजा होती है।
कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है, जिसे आनंद भैरव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का स्थान ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पर है, और मान्यता है कि इसके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है।